Sunday, January 10, 2010

ब्रह्मचर्य की महिमा

प्रार्थना- मनस्येकं, वचनस्येकं, कर्मस्येकं महात्मानां

मनस्यन्यद, वचनस्यन्यद, कमस्यन्यद दुरात्मानां

जिनके मन, वचन और कर्म समान हों, उन्हें महात्मा जानिए यानी महात्मा जो सोचता है, वही बोलता है और वही करता है. वहीं दुरात्मा सोचता कुछ है, बोलता कुछ अलग है और करता कुछ और ही है.

आप महात्मा बनें. जीवन के प्रथम अवस्था(इसे आप छोटा मत बनाएं, यानी इसे कम से कम पच्चीस साल का माने, इसी के अनुसार आपकी आयु होगी) में आप मन, वचन और क्रम से ब्रह्मचर्य का पालन करें. किसी नीम-हकीम(सड़क-छाप सेक्सोलॉजिस्ट) के चक्कर में पड़कर वीर्य को नष्ट मत करें. मैं किसी सिद्धांत या परंपरा की बात नहीं कर रहा हूं, बल्कि एक प्रायोगिक सत्य की बात कर रहा हूं कि जीवन के प्रथमावस्था में वीर्य नष्ट करने से आपका जीवन नष्ट होता है. इसलिए इसको बचाएं.

सनातन संस्कृति में जीवन को चार प्रस्थानों में बांटा गया है- 1. बाल्यावस्था 2. युवावस्था 3. प्रौढावस्था 4. वृद्धावस्था

जीवन की प्रथमावस्था वीर्यरक्षण के नियमित है. यहां आप वीर्य का संचयन करें.

कहा गया है कि शरीर माध्यम खलु धर्म साधनम.

अर्थात् शरीर धर्म का सर्वश्रेष्ठ साधन.

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